हरलालजीका जातीय सभा को श्रीराम भक्त हनुमानजी की अनुकम्पा से श्री हनुमान भजन माला का नवम संस्करण सम्वत् 2074 (सन् 2017) चैत्र सुदी पूर्णिमा पर प्रकाशित करते हुए अपार हर्ष हो रहा है। श्री सांय (हनुमानगढ़) ग्राम भाया वलारी, जिला सीकर, राजस्थान (मुकुन्दगढ़ से लक्ष्मणगढ़ जाने वाले रास्ते पर) मुकुन्दगढ़ से 8 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम मार्ग पर स्थित है। करीब तीन सो दस वर्ष पूर्व स्वनामधन्य श्री हरलालजी (बलारा निवासी) ने एक जांटी गाछ के नीचे श्री बाबा की मूर्ति की प्रतिष्ठा की थी। हरलालजी के वंशज तब से ही पुरानी मान्यताओं को छोड़कर इन्हीं की सेवा पूजा में लगे हुए हैं।
श्री बाबा की असीम कृपा है। जांटी गाछ भीतर से पूरा खोखला है, फिर भी सदैव हरा- भरा रहता है। सम्वत् 2025 की श्री हनुमान जयन्ती से प्रत्येक वर्ष चैत्र पूर्णिमा को मेला लगता है। श्री बाबा का जन्मोत्सव मनाने हरलालजीका परिवार प्रतिवर्ष यहां एकत्रित होता है। भक्तों की संख्या प्रतिवर्ष बढ़ती ही जाती है। समयानुसार एवं आवश्यकतानुसार पुराने निर्माण का जीर्णोद्धार एवं नवीन निर्माण भाइयों के सहयोग से किया गया है और किया जा रहा है दर्शनार्थियों का आवागमन बारह महीने ही लगा रहता है। रहने, नहाने धोने, भोजन-प्रसाद की व्यवस्था यथासम्भव सदैव सुलभ रहती है। श्री बाबा की क्या सकलाई है, यह तो हरलालजीका परिवार का बच्चा-बच्चा या मन्दिर में श्री बाबा के विग्रह का दर्शन करने वाला ही अनुभव कर सकता है। सांखू ग्राम में मंदिर होने के कारण इनका नाम सांखू बाबा, सांखू के हनुमान पड़ गया ग्रामवासियों की सहायतार्थ मंदिर में औषधालय चलाया जाता है। बर्तन भंडार है। विभिन्न आयोजनों पर ग्रामवासियों को मंदिर से बर्तन दिये जाते हैं। ग्राम में बारात वगैरह आने पर मंदिर के कमरे में ठहरने की व्यवस्था भी की जाती है। मंदिर परिसर में श्री राधाकृष्ण का मंदिर एवं शिवालय भी है। श्री हरलालजी के सात पुत्र थे। एक पुत्र रामाकिसनजी का किशोरावस्था में ही देहान्त हो गया था, वे पितर योनि को प्राप्त हुए। श्री सांखू (हनुमानगढ़) से करीब चार किलोमीटर उत्तर ग्राम मिया की चूड़ी में उनका भव्य मंदिर है। मंदिर परिसर में श्री राधाकृष्ण का प्राचीन मंदिर है, उद्यान एवं बालकों के क्रीड़ा हेतु नाना उपकरण लगाये हुए हैं। शरद पूर्णिमा (निर्वाण तिथि) को वहां मेला लगता है। श्री हरलालजी के दूसरे पुत्र का नाम श्री बोहितरामजी था। उनका विवाह जाजूसर ग्राम के श्री केवलचन्दजी की सुपुत्री बरजल देवी के साथ हुआ था। अल्पायु में ही वे मृत्यु को प्राप्त हो गये थे। श्री बरजल देवी पति की पगड़ी को लेकर फोग की लकड़ी की चिता बनाकर बैठ गयी। तेज के प्रभाव से अग्नि स्वयं प्रज्जवलित हुई।
(ग) लड़का जब बड़ा होता है, पहले साँव में हनुमानजी के मंदिर में जइलाका मेरामाकिसन पितरजी एवं सती दादोजी को जात दी जाती है। 2) बालक को माला, बोदरी, भाव (टायफायड) निकलने पर बीमारी ढलने का अनुमानगो का घरमां का भोग एवं घोक देणा होता है। 3) लाकी होने पर नहाण के दिन सवा पांच किलो चूरमां का हनुमानजी को भाग सगाणा और थोक दी जाती है। 4) लड़के के विवाह पर (क) जलदात के दिन सतो दादी को सोरो, नाल एवं नगदी, 13 जगह 4-4 पूड़ों और सोरा, उस पर हाथ फेर कर भाई-बन्धु, पड़ोसी व बेटियों में बांटना। बीद से धोक दिवाणी है। (ख) बान की पहली रात में श्री सती दादी को रात्रि जागरण, रातीजगा में वापो मांडणों है। ग) निकासी के दिन हनुमान जी को सवा पांच किलो चूरमो करके धोक देणी है। रामाकिसनजी का पेठा एवं हनुमानजी का चिटको (नारियल टुकड़ा) का प्रसाद गवाना है। (घ) श्री सतीदादी को एवं श्रीरामाकिसन देवता को पहरावणी (कपड़ा) एवं स्रो सती दादी को पीलो या चूनड़ी करनी (इच्छानुसार) है। (ड) झालरा में ।। मूर्ति (पातड़ी) हनुमानजी, सतीदादी, शंकरजी, पितरजी, चांद, सूरज, गणेशजी, कृष्णाजी, लक्ष्मीजी, रघुनाथजी, कालीजी को घालणी चाहिए। (च) सज्जन गोठ में देवताओं की पत्तल श्रीरामचन्द्रजी, सती दादीजी, श्री हनुमानजी, श्रीरामाकिसनजी, भूलाभटकां को (अपने घर के नियमानुसार निकाले)। (छ) बह आने पर पहले सती दादोजी, श्री पितरजी को जात देणी, बाद में हनुमाननी और अन्य देवता धोकणा चाहिए। (ज) सांख महनुमानजी को गठजोड़ा की जात एवं पितरां को तथा सतोदादो को जात देणो है। 5) लड़की के विवाह पर: (क) हलदात के दिन श्री सतीदादी के सीरापूड़ो का भोग 13 जगह लगावें। (ख) दुकाव के टाइम पर, नीम जुहारी के टाइम पर गीत गाणा है। (शोतला का गीत नहीं गाया जाता है। (ग) घर में रीति हो तो बेटी विदा होने पर सवा पांच किलो हनुमानजी का चूरमा करना है। (घ) समाज में प्रचलित गीत गावें। नोट – परम्परा के गीत मंगल-पाठ की किताब में है।
देवी सती पद को प्राप्त हुई । जिस स्थान पर दादीजी सती हुई. मुकुन्दगढ़ स्टेशन से तीन किलोमीटर पूरब वह स्थान ग्राम कसेरू जिला झुन्झन् में पड़ता है। भादी अमावस्या एवं पोष बदी चौदस (निर्वाण तिथि) को यहाँ मेला लगता है। वहां पर श्री बरजल भवानी का एक विशाल मंदिर है। मंदिर परिसर में उद्यान, कुआं, यात्रियों को ठहरने के लिए कमरे, शौचालय, पेशावघर आदि हैं। भोजन, प्रसाद की भोव्यवस्था है। श्री हरलालजी के बाकी पांच पुत्रों श्री चूड़ामलजी, श्री उदयरामजी, श्री राजारामजी, श्री भूधरमलजी एवं श्री चैतरामणो की हम सन्तान हैं। पुरानी सब परम्पराओं एवं मान्यताओं को त्यागकर श्री हनुमानजी, श्री रामकिसनजी एवं श्री बरजल भवानी को सेवा-पूजा, हम हरलालजी के वंशजों को मिली हुई है। हरलालजीका परिवार जहां भी बसा है, उसने सेवा-पूजा हेतु देवालय के निर्माण का यथासम्भव प्रयास किया है। उदाहरणार्थ मण्डावा मंदिर, लक्ष्मणगढ़ मंदिर, लोसल मंदिर, पिलानी मंदिर, माणकेचर मंदिर, बंगईगांव मंदिर, कलकत्ता मंदिर आदि| परिवार द्वारा और भी देवस्थानों का निर्माण करवाया गया है, लेकिन जानकारी के अभाव में यहां यणित नहीं किया जा सक रहा है। श्री सांय बालाजी सत्संग मण्डल, कलकत्ता की स्थापना सम्बत् 2042 में स्व. भाई श्री भगवती प्रसाद हरलालका की प्रेरणा से की गयो। तब से श्री बाबा की कृया से भजन-कीर्तन का कार्यक्रम निरन्तर चल रहा है। शुभ अवसरों पर भाइयों के निवेदन पर उनके स्थान पर कीर्तन का आयोजन किया जाता है। चैत्र पूर्णिमा एवं पोष बदी चौदस को श्री हरलालजीका जातीय सभा को तरफ से कोर्सन एवं प्रसाद का आयोजन किया जाता है। पौष बदी चौदस पर परिवार की बहू-बेटियों द्वारा सामूहिक मंगल पाठ किया जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन पितरेश्वर जी का भजन, कीर्तन किया जाता है एवं पढ़ाई में 50 प्रतिशत से अधिक प्राप्त करने वाले परिवार के बच्चों को पारितोषिक वितरण किया जाता है। हर्ष की बात है कि पूरा परिवार, हर कार्य में, तन-मन-धन से यथासम्भव सहयोग करने को तैयार रहता है। श्री हरलालनी बाबाजी का संक्षिप्त परिचय, पारिवारिक मान्यताएं एवं परम्पराएं, पारिवारिक गीत एवं हरलालगो का जातोय सभा का संक्षिप्त परिचय जानकारी हेतु दिया जा रहा है। पुस्तक प्रकाशन में रहो भूल भूलाने के आग्रह के साथ सभी । सहयोगियों का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए :
स्वनामधन्य श्री हरलालजीका श्री हरलालजी का जन्म, राजस्थान के ग्राम नाण-आमरसर प्रवासी, सीकर जिले के बलारां ग्राम निवासी श्री टोडरमल कानोड़िया के यहां हुआ था। अपने सरल स्वभाव, स्वधर्मपालन के कारण वे जनपद में प्रतिष्ठित व्यक्ति हुए। श्री हरलालजी, हनुमानजी के अनन्य भक्त थे एवं मां लक्ष्मी की उन पर असीम कृपा थी। कालान्तर में इनके वंशज हरलालजीका कहलाए।
हरलालजी खेतिहर बनिये थे। बलारा एवं आसपास के गांव सांय, हनुमानगढ़ आदि उनके खेतों की चौहद्दी में ही पड़ते थे। एक साल खेती पकी हुई थी। अचानक टिड्डी दल का आगमन हुआ। भयभीत हो श्री हरलालजी ने श्री हनुमानजी का स्मरण कर जांटी गांछ के नीचे उनकी स्थापना की एवं मनोती की कि अगर उनकी फसल बच जायेगी तो उनके जाये जामते आगे से हनुमान जी को ही अपना इष्ट देव मानेंगे। बाबा की कृपा, तीन सौ पन्द्रह वर्ष से ऊपर इस घटना को हो गये है, अब तक उक्त इलाका टिड्डी दल से दूर है। स्थानीय निवासी साल में एक निश्चित दिन घर से घी, चीनी, आटा इकत्रित कर प्रसाद बनाते हैं एवं बाबा की सेवा में, टिड्डी दल से रक्षार्थ अर्पण करते हैं।
विक्रम सम्वत् 1973 में हरलालजीका भाइयों (कोलकाता) ने समवेत होकर एक संस्था का निर्माण किया जिसे हरलालजीका जातीय सभा का नाम दिया गया। कालान्तर में प्रेरित होकर मुम्बई निवासी भाइयों ने भी इसकी एक शाखा कोलकाता सभा की लिखित अनुमति से बम्बई में खोली। हरलालजीका परिवार की मान्यताएं एवं परम्पराएं पुत्ररत्न प्राप्ति पर :- 1) (क) किसी भाई को पुत्र रत्न की प्राप्ति होने पर उस दिन श्री सांखू बालाजी के दो, सती दादीजी के एक एवं श्री रामाकिसन पितरजी के एक नारियल चढ़ाए जाते हैं। श्री रामाकिसन जी के सवा किलो सकरपारा का भोग चढ़ता है। (ख) नहाण के दिन: नहाण के दिन की पहली रात को सती दादी का रात्रि जागरण होता है। नहाण के दिन सती दादी का और पितर जी का गीत गाया जाता है। हनुमानजी को सवा पांच किलो का चूरमा का भोग एवं हनुमान मंदिर में धोक लगायी जाती है। कुंआ पूजना, गंगाजी पूजनी, सती दादी के मंडप में या पूरब दिशा में फोग के गाछ में या पारीण्डा में धोक दी जाती है। सती दादी के नाम का और पितरजी के नाम का, अपनी रीति अनुसार कपड़ा पहनाया जाता है। (पहरावनी)।